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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 30 


2 घंटे के "योग" से कच पसीने से पूरा नहा गया था । थोड़ा सा भी योग यदि प्रतिदिन कर लिया जाये तो उससे पूरा दिन ताजगी भरा निकलता है । नियमित योग मनुष्य को निरोग रखता है और उसे न केवल शारीरिक अपितु मानसिक रूप से सुदृढ़ भी बनाता है । 

योग करने के बाद कच आश्रम में टहलने लगा । टहलते टहलते वह फुलवारी की ओर चला गया । वहां पर कुछ साधिकाऐं फुलवारी में काम कर रही थीं । कोई खरपतवार निकाल रही थी तो कोई नीचे गिरी हुई पत्तियों, फूलों और सूखे हुए तनों को बीनकर एक कचरा पात्र में फेंक रही थी । कच उन्हें देखकर ठिठक गया । उन्हें अभिवादन करते हुए बोला 
"प्रणाम माते" ।
इस अभिवादन को सुनकर सभी साधिकाऐं अचकचा गईं । 
"माते" ! किसी अजनबी युवक से ऐसा संबोधन उन्होंने पहली बार सुना था । साधिकाओं ने कच को पहचानने की कोशिश की किन्तु वे उसे पहचान नहीं पाईं । थक हारकर उन्होंने कच से ही पूछ लिया 
"माते ? ये कैसा संबोधन है" ? उनके चेहरे पर विस्मय के भाव थे । 

कच को उन सभी साधिकाओं का विस्मय मिश्रित चेहरा बड़ा भला लगा । उन्हें और अधिक सम्मान देते हुए कच ने उनके चरण स्पर्श किये और कहने लगा 
"माता को माते नहीं कहूंगा तो और क्या कहूंगा ? आप आयु में मुझसे ज्येष्ठ हैं । इस आश्रम का यह नियम है कि ज्येष्ठ स्त्री हो तो माता कहलायेगी और कनिष्ठ हो तो भगिनी कहलायेगी । मैंने आश्रम के नियमों को दृष्टिगत करते हुए ही आपको यह संबोधन दिया है माते । इसके अतिरिक्त आप मां भगवती की भी तो प्रतिनिधि हैं इसलिए आप मेरी माते ही तो हैं" । कच मुस्कुराते हुए बोला । 

कच की मुस्कुराहट में न जाने कैसा जादू था जिसने सभी साधिकाओं को अपने वश में कर लिया था । साधिकाऐं तर्क वितर्क छोड़कर कच को देखने लग गईं । कच के चेहरे पर एक अद्भुत तेज था । जैसे सूर्य भगवान पृथ्वी पर कच के रूप में अवतरित हो गये हों । बलिष्ठ और चौड़े स्कंध वायु देव का स्मरण करा रहे थे । लंबे काले घुंघराले बाल वायु के वेग से ताल मिलाते हुए बार बार उसके चेहरे पर ऐसे आ रहे थे जैसे चांद के ऊपर क्षण क्षण में घने काले बादल छा जायें और चांद को अपने आगोश में लेने का प्रयास करें । उसकी वाणी में कोमलता और मिठास दोनों थीं । 

कच के सम्मोहन चक्र से साधिकाओं ने स्वयं को बरबस बाहर निकाला और बोलीं "आप कौन हैं आर्य ? इस आश्रम में नये हैं क्या" ? उनके चेहरे पर,आश्चर्य के भाव थे ।
"आपने सही पहचाना माते । मेरा नाम कच है । मैं कल ही आया हूं इस आश्रम में" । कच ने सहज भाव से अपना परिचय दिया । 
"अच्छा , तो आप नये विद्यार्थी हैं" । 
"जी, सही कहा आपने माते" । 
"ये बार बार माते माते क्यों कह रहे हैं आप ? हमें आपके मुंह से माते कहलाना अच्छा नहीं लग रहा है । अब आप जाइए और हमें अपना काम करने दीजिए" । कच से पीछा छुड़ाने के उद्देश्य से वह साधिका बोली । 
"ठीक है माते , जैसी आपकी इच्छा । मैं एक बात कहना चाहता हूं, यदि आप उसे सुनना चाहें तो" ? कच ने रहस्यमई मुस्कान बिखेरते हुए कहा । 

कच के ऐसा कहने से सभी साधिकाओं के मन में खलबली मच गई । "पता नहीं क्या कहना चाहता है यह युवक" ? सब साधिकाऐं सोचने लगीं । मुख्य साधिका ने कहा "जल्दी कहिए शिष्य महाराज" । उसने अपने हाथ जोड़ लिए थे और कच के सम्मान में वह आगे की ओर आधी झुक भी गई थी । उसकी इस भाव भंगिमा पर बाकी सब साधिकाऐं व्यंग्य से खिलखिला कर हंस पड़ी । किन्तु इसका कच पर कोई असर नहीं हुआ और वह बेझिझक होकर बोला । 

"ये जो फूल , पत्तियां और वनस्पति का कचरा इन बगियाओं से निकलता है इसे आप व्यर्थ में कचरा पात्र में नहीं फेंका करें, माते, अपितु आप इससे जैविक उर्वरक तैयार कर लें । यह जैविक उर्वरक गुलाब के पौधों के लिए अमृत तुल्य होगा । और हां, वह जो काला गुलाब का पौधा है, जिसमें एक गुलाब का फूल भी खिल रहा है, उसमें एक रोग लग गया है ।  इस रोग के निदान के लिए उसमें थोड़ा सा फिटकरी का घोल डाल दें नहीं तो वह पौधा धीरे धीरे सूख जाएगा" । कच ने एक गुलाब के पौधे की ओर इशारा करते हुए कहा था ।इतना कहकर कच आगे बढ़ गया और सभी साधिकाऐं उसे जाते हुए देखतीं रहीं । 

इसके पश्चात सभी साधिकाऐं मुख्य साधिका के पास आ गईं और उसको चारों ओर से घेरकर खडी हो गईं । एक साधिका बोली "क्या कह गया था वह युवक" ? 
दूसरी बोली "किसी उर्वरक के बारे में बात कर रहा था वह" । तीसरी ने कहा "मैंने तो सुना था कि वह किसी गुलाब के पौधे की ओर संकेत करके कह रहा था कि वह पौधा मर रहा है । उसे कैसे पता कि वह पौधा मर रहा है ? वह कोई गुलाब के पौधों का ज्योतिषी है क्या" ? वह कच की खिल्ली उड़ाते हुए बोली । 

सब साधिकाओं की बात सुनने के पश्चात मुख्य साधिका बोली "वह अपने बागवानी के ज्ञान का प्रदर्शन कर रहा था और कुछ नहीं । इन विद्यार्थियों ऐसा लगता है कि जितना ज्ञान उनमें भरा हुआ है उतना विश्व में किसी में भी नहीं है । ज्ञान प्रदर्शन का उसका काम पूरा हो गया तो वह चला गया । अब हम उसकी कही हुई बातों पर मीमांसा करते रहें" । मुख्य साधिका की बातों में कच के लिए तिरस्कार और अन्य साधिकाओं के लिए फटकार थी कि "जाओ, अपना काम करो और अनावश्यक बातों की मीमांसा में समय व्यर्थ न करो" । सभी साधिकाऐं उसकी बात समझ गईं और अपने अपने काम में लग गईं । 

श्री हरि 
5.7.2023 

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